
TNR News : Hanuman Jayanti 2025 – हनुमान जन्मोत्सव पर विशेष: छत्तीसगढ़ में विराजमान हैं हनुमान जी की अद्भुत प्रतिमाएं, जानिए उनके पीछे की रहस्यमयी कथाएं
आज देशभर में हनुमान जन्मोत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जा रहा है। छत्तीसगढ़ सहित देश के कोने-कोने में स्थित हनुमान मंदिरों में सुबह से ही भक्तों की भारी भीड़ उमड़ रही है। मंदिरों को सुंदर फूलों और दीपों से सजाया गया है, वहीं कई जगहों पर धार्मिक आयोजन, भजन और हवन-पाठ भी चल रहे हैं।
इस शुभ अवसर पर हम आपको छत्तीसगढ़ के उन धार्मिक स्थलों की सैर पर ले चलते हैं, जहां बजरंग बली की दुर्लभ, प्राचीन और अलौकिक प्रतिमाएं विराजमान हैं। इन स्थानों में शिवरीनारायण, रतनपुर और भिलाई का नाम प्रमुखता से शामिल है।
शिवरीनारायण: यहां विराजे हैं काले हनुमान
जांजगीर-चांपा जिले के शिवरीनारायण में भगवान हनुमान की एक अनोखी काले रंग की प्रतिमा विराजमान है, जिसे लंका दहन हनुमान कहा जाता है। मान्यता है कि लंका जलाने के बाद हनुमान जी थक गए थे और उस थकान को दूर करने के लिए यहां प्रतिदिन उनके शरीर की तिल या चमेली के तेल से मालिश की जाती है। यह प्रतिमा काले पत्थर से बनी है और यहां विशेष पूजा विधि के साथ भगवान की सेवा की जाती है।
शिवरीनारायण को छत्तीसगढ़ की जगन्नाथपुरी भी कहा जाता है। मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ की मूल प्रतिमाएं कभी यहीं स्थित थीं, जो बाद में उड़ीसा के पुरी ले जाई गईं।
रतनपुर: जहां देवी रूप में होती है हनुमान जी की पूजा
बिलासपुर जिले के रतनपुर स्थित गिरजाबंध मंदिर में हनुमान जी की प्रतिमा देवी स्वरूप में पूजी जाती है। यह दक्षिणमुखी प्रतिमा अत्यंत दुर्लभ है, जिसमें हनुमान जी के कंधों पर राम और लक्ष्मण विराजे हैं तथा उनके पैरों के नीचे दो राक्षस दबे हैं, जिनमें एक को अहिरावण माना जाता है।
यहां की एक पौराणिक कथा के अनुसार, 10वीं सदी के राजा पृथ्वी देवजू को कुष्ठ रोग हो गया था। हनुमान जी ने सपने में दर्शन देकर उन्हें मंदिर निर्माण और प्रतिमा स्थापना का निर्देश दिया। इसके बाद राजा रोगमुक्त हो गए और तभी से यह प्रतिमा देवी रूप में पूजी जा रही है।
भिलाई: गोबर वाले हनुमान जी और 350 साल से जलती अग्नि
भिलाई के नारधा गांव में स्थित गोबर वाले हनुमान जी का मंदिर अपनी अलग पहचान रखता है। यहां की प्रतिमा बाबा रुक्खड़नाथ महाराज के आश्रम में स्थापित है। आश्रम के प्रमुख पुजारी सुरेंद्र गिरी महाराज बताते हैं कि यह स्थान पवित्र तपस्थली रही है, जहां खैरागढ़ और नागपुर के राजा भी दर्शन करने आते थे।
यहां एक पवित्र अग्निकुंड है, जिसे लगभग 350 साल पहले जलाया गया था और तब से लगातार जल रहा है। भक्तों को इसकी भभूत प्रसाद के रूप में दी जाती है। आश्रम से जुड़ी अनेक चमत्कारी कथाएं हैं, जिनमें एक कथा के अनुसार, बाबा ने एक बार तिजरा नामक ज्वर को कंबल में उतारकर काबू में कर लिया था।
कहा जाता है कि यहां सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है। विशेष रूप से निसंतान दंपती यहां संतान प्राप्ति की कामना लेकर आते हैं। आश्रम का कुंड भी विशेष मान्यता रखता है, जिसके जल से स्नान करने से कुष्ठ रोग तक ठीक हो जाता है।