
TNR न्यूज़, रायपुर।
छत्तीसगढ़ की राजनीति एक बार फिर गर्मा गई है। इस बार विवाद का केंद्र बना है राज्य सरकार द्वारा आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम “बोरे बासी तिहार”, जिसके खर्च को लेकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने भ्रष्टाचार का गंभीर आरोप लगाया है। भाजपा का दावा है कि इस आयोजन पर 8 करोड़ 32 लाख रुपए खर्च किए गए, जो ‘संस्कृति के नाम पर सरकारी धन की लूट’ जैसा प्रतीत होता है।
भाजपा का आरोप: संस्कृति के नाम पर भ्रष्टाचार
भाजपा के प्रदेश महामंत्री संजय श्रीवास्तव ने इस पूरे आयोजन को ‘कांग्रेस का नया कमाई मॉडल’ बताते हुए कहा कि यह कार्यक्रम गरीबों की भलाई के लिए नहीं, बल्कि कांग्रेस नेताओं की जेबें भरने के लिए रचा गया था। उन्होंने सवाल उठाया कि अगर यह राशि सीधे जरूरतमंदों पर खर्च होती, तो ज़मीनी स्तर पर अधिक प्रभावी होती। श्रीवास्तव ने इसे छत्तीसगढ़ की संस्कृति के नाम पर जनता से किया गया ‘धोखा’ करार दिया।
कांग्रेस का बचाव: परंपरा को संजीवनी देने की कोशिश
दूसरी ओर, कांग्रेस की ओर से पूर्व खाद्य मंत्री अमरजीत भगत ने भाजपा के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि “बोरे बासी तिहार” केवल एक खानपान से जुड़ा आयोजन नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक आत्मा से जुड़ा महत्त्वपूर्ण पर्व है। भगत के अनुसार, इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में लोगों की भागीदारी होती है, जिसके लिए भोजन, मंच, बैठने की व्यवस्था, प्रचार-प्रसार, और अन्य व्यवस्थाओं पर खर्च स्वाभाविक है।
उन्होंने यह भी कहा कि यदि कहीं किसी अधिकारी से गड़बड़ी हुई है तो उसकी जांच होनी चाहिए, लेकिन पूरे आयोजन को ही बदनाम करना सही नहीं है।
जनता की राय: बंटी हुई सोच
इस पूरे विवाद के बीच जनता की राय भी दो धड़ों में बंटी दिख रही है। कुछ लोग इस आयोजन को राज्य की संस्कृति को प्रोत्साहित करने वाला बताते हैं, तो कई लोग इसे सरकारी पैसे की बर्बादी मानते हैं। सोशल मीडिया से लेकर गांव-गांव तक इस आयोजन और इसके खर्च को लेकर चर्चा गर्म है।
क्या है “बोरे बासी तिहार”?
छत्तीसगढ़ में गर्मी के मौसम में पारंपरिक तौर पर खाया जाने वाला बोरे बासी एक ठंडा और सादा व्यंजन होता है, जिसे संस्कृति और स्वास्थ्य से जोड़कर देखा जाता है। इस व्यंजन को केंद्र में रखकर राज्य सरकार ने यह पर्व आयोजित किया, जिसका उद्देश्य स्थानीय परंपराओं को राष्ट्रीय मंच देना बताया गया।
आगे क्या?
फिलहाल, यह मामला केवल बयानबाजी तक सीमित नहीं है। संभावना जताई जा रही है कि आने वाले दिनों में इस आयोजन की जांच हो सकती है, और यदि कहीं गड़बड़ी पाई गई तो कार्रवाई भी संभव है। विपक्ष इस मुद्दे को विधानसभा तक ले जाने की तैयारी में है, जबकि सत्ताधारी दल इसे जनसंस्कृति को बचाने की पहल बता रहा है।