
TNR न्यूज़, कांकेर।
आज जब शादियों में हेलीकॉप्टर, लग्ज़री कारें और भारी भरकम खर्च आम बात हो गई है, ऐसे में छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के एक युवक ने अपनी शादी को पूरी तरह देसी अंदाज़ में रचाकर समाज को एक नई दिशा दी है। बांगाबारी गांव के रहने वाले लोकेश मरकाम ने अपनी बारात किसी चमचमाती गाड़ी में नहीं, बल्कि पारंपरिक बैलगाड़ी से निकाली। यह दृश्य न सिर्फ देखने वालों के लिए अनोखा था, बल्कि यह समाज के लिए एक मजबूत संदेश भी था — परंपरा, सादगी और संस्कृति का सम्मान।
सादगी में छुपा अपनापन
लोकेश मरकाम, जो पेशे से ग्रामीण स्वास्थ्य कार्यकर्ता (RHO) हैं और हिंदी साहित्य एवं समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर (MA) की डिग्री रखते हैं, का मानना है कि शादी जैसे पवित्र अवसर को दिखावे से नहीं, बल्कि संस्कृति और जड़ों से जोड़कर मनाना ही सच्चा उत्सव है। उन्होंने बताया कि यह निर्णय उन्होंने न सिर्फ फिजूलखर्ची से बचने के लिए लिया, बल्कि अपनी मिट्टी की खुशबू को बरकरार रखने के लिए भी।
10 किलोमीटर लंबी बारात बनी चर्चा का विषय
यह खास बारात बांगाबारी से रवाना होकर लगभग 10 किलोमीटर दूर बासनवाही के नयापारा गांव पहुंची। चार सुंदर बैलगाड़ियों में सज-धज कर लोकेश के परिवारजन और नज़दीकी मित्र बारात में शामिल हुए। रास्ते में जगह-जगह ग्रामीणों ने पारंपरिक तरीके से बारात का स्वागत किया। ढोल-नगाड़ों की गूंज और लोकगीतों की स्वर लहरियों ने इस यात्रा को और भी यादगार बना दिया।
दुल्हन का भी परंपरा के प्रति सम्मान
लोकेश की जीवनसंगिनी, जो नारायणपुर के अति संवेदनशील क्षेत्र में स्टाफ नर्स के पद पर कार्यरत हैं, ने भी इस देसी पहल की सराहना की। उनका कहना था कि बैलगाड़ी में बारात आना हमारे पूर्वजों की परंपरा रही है और इसे निभाकर उन्हें गर्व की अनुभूति हो रही है।
गांव के लोग बने भागीदार
गांववालों का कहना है कि बैलगाड़ियाँ आज भी ग्रामीण जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं, इसलिए इन्हें जुटाना किसी चुनौती से कम नहीं था। लेकिन इस आयोजन ने साबित कर दिया कि आधुनिकता की दौड़ में भी परंपराएं आज भी जीवंत हैं, बस उन्हें जीने का जज़्बा चाहिए।
सादगी का संदेश
इस शादी ने यह उदाहरण पेश किया है कि जब भावना सच्ची हो, तो दिखावे की कोई जरूरत नहीं होती। लोकेश मरकाम की यह पहल अब आसपास के गांवों में भी चर्चा का विषय बन गई है और लोग इसे एक प्रेरणादायक कदम के रूप में देख रहे हैं।