
TNR न्यूज़, रायपुर।
पाकिस्तान के सिंध प्रांत से हाल ही में भारत आए करीब 125 हिंदू नागरिक इन दिनों गहरी चिंता और असुरक्षा के माहौल में जी रहे हैं। पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत सरकार द्वारा पाकिस्तानियों को 48 घंटे में देश छोड़ने के आदेश ने इन शरणार्थियों की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं। यह समूह 22 अप्रैल को भारत पहुंचा था और अब रायपुर में आश्रय की तलाश कर रहा है।
शुक्रवार को इन पीड़ितों का एक प्रतिनिधिमंडल छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा से मिला। अपनी व्यथा सुनाते हुए उन्होंने भारत में स्थायी निवास की गुहार लगाई। इस मुलाकात के दौरान डिप्टी सीएम ने इन शरणार्थियों को भरोसा दिलाया कि वे इन्हें आम पाकिस्तानी नागरिक नहीं, बल्कि “पाकिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न के शिकार पीड़ित” मानते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि केंद्र सरकार से बात कर इनकी समस्या का स्थायी समाधान तलाशने की कोशिश की जाएगी।
“पाकिस्तान लौटने का सवाल ही नहीं”: पीड़ितों की पुकार
इन पीड़ितों में शामिल सुखदेव लुंद, जो सिंध के घोटकी जिले के खानपुर कस्बे से आए हैं, ने स्पष्ट रूप से कहा, “हम किसी भी हालत में वापस पाकिस्तान नहीं जाएंगे। वहां अब हमारे लिए कोई भविष्य नहीं है।” सुखदेव 45 दिन के विजिटर वीजा पर भारत आए हैं और रायपुर के शदाणी दरबार में अपने 24 सदस्यीय समूह के साथ रुके हुए हैं।
सुखदेव ने बताया कि पाकिस्तान में हिंदुओं को लगातार आतंकवाद, जबरन धर्मांतरण और सामाजिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। “हम भारत में सिर्फ एक सुरक्षित जीवन चाहते हैं। बच्चों की पढ़ाई, सम्मानजनक जीवन और धार्मिक स्वतंत्रता की उम्मीद लिए यहां आए हैं,” उन्होंने कहा।
पहले से मौजूद हैं कई पाकिस्तानी हिंदू परिवार
सुखदेव ने यह भी बताया कि वे अकेले नहीं हैं। इससे पहले भी लगभग 100 से अधिक पाकिस्तानी हिंदू रायपुर पहुंच चुके हैं और सभी ने भारत सरकार से स्थायी नागरिकता की मांग की है। इनका कहना है कि अगर उन्हें भारत में कानूनी तौर पर रहने की अनुमति मिलती है, तो वे न सिर्फ खुद को सुरक्षित महसूस करेंगे, बल्कि समाज के लिए भी योगदान दे सकेंगे।
सरकार के सामने चुनौती
भारत सरकार के लिए यह मामला अब मानवीय संवेदना और राष्ट्रीय नीति के बीच संतुलन साधने का है। जहां एक ओर राष्ट्रीय सुरक्षा अहम है, वहीं दूसरी ओर धार्मिक उत्पीड़न से भागकर आए इन लोगों के लिए संवेदनशील रवैया अपनाना भी जरूरी है।
डिप्टी सीएम शर्मा की पहल इस दिशा में एक सकारात्मक कदम मानी जा सकती है। अब देखने वाली बात यह होगी कि केंद्र सरकार इन पीड़ितों के लिए क्या नीति अपनाती है।