
TNR न्यूज़, बीजापुर।
छत्तीसगढ़ और तेलंगाना की सीमा पर पिछले चार दिनों से देश का अब तक का सबसे बड़ा नक्सल विरोधी अभियान जारी है। इस हाई-लेवल ऑपरेशन में लगभग 8 से 10 हजार सुरक्षाबल तैनात हैं, जिन्होंने बीजापुर के पहाड़ी और जंगल क्षेत्रों में घेरा कस दिया है। सुरक्षाबलों और नक्सलियों के बीच रुक-रुक कर मुठभेड़ जारी है और अब तक छह नक्सलियों के मारे जाने की पुष्टि हुई है।
ऑपरेशन के बीच नक्सलियों का पत्र, शांति वार्ता की पेशकश
इस घटनाक्रम में उस वक्त नया मोड़ आया, जब शुक्रवार दोपहर नक्सलियों की ओर से एक चौंकाने वाली अपील सामने आई। उत्तर पश्चिम सब जोनल ब्यूरो के प्रभारी रूपेश द्वारा जारी एक पत्र में नक्सलियों ने पहली बार स्पष्ट रूप से भारत के संविधान और देश की संप्रभुता को स्वीकार करने की बात कही है। इसके साथ ही उन्होंने हथियार छोड़कर शांति वार्ता शुरू करने की इच्छा जताई है और केंद्र सरकार से ऑपरेशन रोकने की मांग की है।
राजनीतिक गलियारों में हलचल, कांग्रेस और भाजपा आमने-सामने
इस प्रस्ताव पर राजनीतिक प्रतिक्रियाएं भी तीव्र हो गई हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ प्रवक्ता सुरेंद्र शर्मा ने कहा,
“यह एक ऐतिहासिक क्षण हो सकता है। जब दुश्मन हथियार छोड़ने और संविधान स्वीकारने की बात कर रहा है, तो सरकार को उस रास्ते पर गंभीरता से विचार करना चाहिए जो शांति की ओर जाता हो।”
वहीं, भाजपा का रुख सख्त बना हुआ है। पार्टी विधायक राजेश मूणत ने दो टूक शब्दों में कहा,
“नक्सल समस्या को समाप्त करने के लिए गृह मंत्रालय प्रतिबद्ध है। बातचीत की कोई संभावना तभी बन सकती है जब नक्सली बिना शर्त आत्मसमर्पण करें। सरकार की नीति स्पष्ट है—या तो हथियार छोड़ो या परिणाम भुगतो।”
चौतरफा घेराबंदी, शीर्ष नक्सली कमांडर घेरे में
सूत्रों के मुताबिक, ऑपरेशन में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कई वांछित और शीर्ष नक्सली नेता इस समय सुरक्षाबलों की घेराबंदी में हैं। पहाड़ियों में छिपे इन नेताओं को बाहर निकालने के लिए ड्रोन, हेलिकॉप्टर और सैटेलाइट मॉनिटरिंग का भी सहारा लिया जा रहा है। सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि यह अभियान यदि सफल रहता है तो नक्सलवाद की रीढ़ तोड़ दी जाएगी।
क्या वाकई नक्सलवाद का अंत नजदीक है?
विशेषज्ञों की राय में यह स्थिति असाधारण है। एक तरफ जबरदस्त सैन्य दबाव, दूसरी ओर आत्मसमर्पण की पेशकश—यह संकेत दे सकता है कि नक्सली नेतृत्व अब अस्तित्व बचाने की लड़ाई में है। हालांकि, यह भी जरूरी है कि सरकार इस अवसर को रणनीतिक चतुराई से उपयोग में लाए ताकि स्थायी शांति सुनिश्चित की जा सके।
नजरें अब केंद्र के अगले कदम पर
अब सबकी नजरें केंद्र सरकार और गृहमंत्रालय की अगली रणनीति पर टिकी हैं। क्या सरकार शांति वार्ता की संभावनाएं तलाशेगी या ऑपरेशन को निर्णायक मोड़ तक ले जाएगी? आने वाले कुछ दिन देश के नक्सल इतिहास में निर्णायक साबित हो सकते हैं।